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षड॑स्य वि॒ष्ठाः श॒तम॒क्षरा॑ण्यशी॒तिर्होमाः॑ स॒मिधो॑ ह ति॒स्रः। य॒ज्ञस्य॑ ते वि॒दथा॒ प्र ब्र॑वीमि स॒प्त होता॑रऽऋतु॒शो य॑जन्ति ॥५८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

षट्। अ॒स्य॒। वि॒ष्ठाः। वि॒स्था इति॑ वि॒ऽस्थाः। श॒तम्। अ॒क्षरा॑णि। अ॒शी॒तिः। होमाः॑। स॒मिध॒ इति॑ स॒म्ऽइधः॑। ह॒। ति॒स्रः। य॒ज्ञस्य॑। ते॒ वि॒दथा॑। प्र। ब्र॒वी॒मि॒। स॒प्त। होता॑रः। ऋ॒तु॒श इति॑ ऋतु॒ऽशः। य॒ज॒न्ति॒ ॥५८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:58


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्व मन्त्र में कहे प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासु लोगो ! (अस्य) इस (यज्ञस्य) सङ्गत जगत् के (षट्) छः ऋतु (विष्ठाः) विशेष स्थिति के आधार (शतम्) असंख्य (अक्षराणि) जलादि उत्पत्ति के साधन (अशीतिः) असंख्य (होमाः) देने-लेने योग्य वस्तु (तिस्रः) आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तीन (ह) प्रसिद्ध (समिधः) ज्ञानादि की प्रकाशक विद्या (सप्त) पाँच प्राण, मन और आत्मा सात (होतारः) देने-लेने आदि व्यवहार के कर्त्ता (ऋतुशः) प्रति वसन्तादि ऋतु में (यजन्ति) सङ्गत होते हैं, उस जगत् के (विदथा) विज्ञानों को (ते) तेरे लिये मैं (प्रब्रवीमि) कहता हूँ ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - हे ज्ञान चाहनेवाले लोगो ! जिस जगद्रूप यज्ञ में छः ऋतु स्थिति के साधक, असंख्य जलादि वस्तु, व्यवहारसाधक बहुत व्यवहार योग्य पदार्थ और सब प्राणी-अप्राणी होता आदि सङ्गत होते हैं और जिस में ज्ञान आदि का प्रकाश करनेवाली तीन प्रकार की विद्या हैं, उस यज्ञ को तुम लोग जानो ॥५८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्वप्रश्नानामुत्तराण्याह ॥

अन्वय:

(षट्) ऋतवः (अस्य) (विष्ठाः) (शतम्) (अक्षराणि) उदकानि (अशीतिः) उपलक्षणमेतदसंख्यस्य (होमाः) (समिधः) समिध्यते प्रदीप्यते ज्ञानं याभिस्ताः (ह) किल (तिस्रः) (यज्ञस्य) (ते) तुभ्यम् (विदथा) विज्ञानानि (प्र) प्रकर्षेण (ब्रवीमि) (सप्त) पञ्च प्राणा मन आत्मा च (होतारः) दातार आदातारः (ऋतुशः) (यजन्ति) ॥५८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासवोऽस्य यज्ञस्य षड्विष्ठाः शतमक्षराण्यशीतिर्होमास्तिस्रो ह समिधः सप्त होतार ऋतुशो यजन्ति तस्य विदथा तेऽहं प्रब्रवीमि ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - हे ज्ञानमीप्सवो जनाः ! यस्मिन् यज्ञे षड् ऋतवः स्थितिसाधका, असंख्यानि जलादीनि वस्तूनि व्यवहारसाधकानि, बहवो व्यवहारयोग्याः पदार्थाः, सर्वे प्राण्यप्राणिनो होत्रादयः सङ्गच्छन्ते, यत्र च ज्ञानादिप्रकाशिकाः त्रिविधा विद्याः सन्ति, तं यज्ञं यूयं विजानीत ॥५८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जिज्ञासू लोकांनो ! या जगतरूपी यज्ञात सहा ऋतू हे स्थिती साधक असून जल वगैरे असंख्य पदार्थ व्यवहार साधक असतात सर्व जड व चेतन (होता) यांची संगती होते व ज्याच्यामध्ये आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक या तीन प्रकारच्या ज्ञानप्रकाश करणाऱ्या विद्या आहेत त्या (जगतरूपी) यज्ञाला तुम्ही जाणा.